कवि की बातें कवि ही जाने
जीवन की किसी परिचर्चा में एक दिन किसी ने पूँछ लिया बड़ा मौलिक प्रश्न आखिर आप कविता लिखते कैसे है श्रीमान मैंने सोंचा प्रश्न वाकई मौलिक है और इतना भी नही है आसान तो क्या करूं, उत्तर कहा खोजूं, या फ़िर चुप ही रहूँ हंस के टाल दूँ या फ़िर जीवनदर्शन की गहराइयों में घुमा के हवा में उछाल दूँ अभी मै उत्तरों के विन्यास में छटपटा ही रहा था कि तभी मेरे अन्दर के इंजिनियर ने मौके का फायदा उठाया इससे पहले मै कुछ सोंच पाता, उसने बेधड़क अपना उत्तर सुझाया कविता लिखने में क्या है, शब्दों के भण्डार का खेल है भाषा की पकड़ और तुकबंदी का सीधा सा मेल है हैं जी। मै तो कहता हूँ कविता कोई भी लिख ले जो पढ़ा लिखा हो कठिन कठिन शब्द इकठ्ठे कर लो ना जुगाड़ हो तो शब्दकोष पकड़ लो चार पॉँच कवितायें पढ़ो थोड़ा इधर उधर से उठा लो, थोड़ा अपनी गढ़ो मै चुपचाप सुनता रहा लेकिन मेरा मन कुछ और ही धुनता रहा अब मेरे अन्दर के कलाकार की बारी थी मेरी उधेड़ बुन अभी भी जारी थी एक नया पक्ष उभरा कविता भावनाओं का शब्दीकरण है भाषा का कोई बंधन नही क्योंकि भावनाओ का अपना अलग व्याकरण है मन के चित्र शब्दों में उतरते जाते हैं हम भावनाओं में बहते