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Showing posts from May, 2019

हमारी ईंट तुम्हारे पत्थर....

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Souce:  imgur.com फेसबुक और ट्विटर पर कभी हम हम नहीं रहते, कभी तुम तुम नहीं रहते. मुद्दों की गर्माहट में रिश्ते सुलग जाते हैं, लकीरें खिंच जाती है और इंटरनेट के परदे के पीछे छुप कर हर कोई अपने अंदर के इंसान को भूल जाता है. इंटरनेट की बहस डिजिटल दुनिया में नाश्ते और खाने जैसा ही हो गयी है और दूर से देखता हूँ तो इंटरनेट के बड़े मंच पर सिर्फ ईंटे पत्थरों के ढेर ही नज़र आते हैं. इन्ही ईंट पत्थरों को चार पंक्तियाँ समर्पित हैं.... ईंट का जवाब पत्थर से दिया  और अपनी ख़ुदी में चूर हो गए, औरों के एहसास कौन समझे,  अपनी सुना के अव्वल मशहूर हो गए | दोस्त हैं तो कोई बताये आखिर क्यों  ईंट पत्थर उठाने को मज़बूर हो गए,  न हम बदले न तुम मगर अफ़सोस,  ईंट और पत्थर वाजिब जरूर हो गए |

नयी सरहदों की तलाश

आध्यात्म पे चर्चा अक्सर दोनों पक्षों की हदों में आ कर अटक जाती है. एक की हद में आगे की सोंच नहीं होती, दूसरे की हद के उस पार सोंच को प्रत्यक्ष कर पाने का  तरीका नहीं होता. इसी हद और सरहद की जद्दोजेहद पे दो पंक्तियाँ... जिन्हें जुनून है नए रास्तों का नई सरहदों का, मयस्सर हैं उनके ख़ातिर सुराग मंज़िलों के रोशनदानों पे पर्दे हैं और दरवाजों पर ताले, और वो कहते हैं उन्हें रोशनियों का शौक़ है - राकेश 

ख़्वाहिशों का खेल

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image credits:  Sergey Nivens, ID 625010075/Shutterstock हम बड़ी बड़ी ख़्वाहिशें तो रखते हैं लेकिन हमारा डर कभी कभी उनसे भी बड़ा हो जाता है. हम नाकाम तभी होते हैं जब हमारा जूनून और हमारी कोशिशें हमारे डर से हार जाते हैं|  किनारों पे खड़े रहने वाले देखेंगे तमाशा और अपने अपने घर चले जायेंगे   मगर कुछ ढूंढते हैं बेसब्र, कि इस जहाँ से आगे भी तो कोई दूसरा जहाँ होगा  ज़ुनून ऐसा कि समंदर में बेख़ौफ़ उतरते हैं, लहरों से उलझने का जिगर रखते हैं     तूफ़ानों को भी इल्म है कि दास्ताने-सफ़र में किस की सरफ़रोशी का बयां होगा  - राकेश 

सत्ता का संग्राम

पहले चुनाव की भाषणबाजी, फिर चुनाव, फिर चुनाव की चर्चा और फिर चुनाव के नतीजों के पहले की गहमा गहमी ....  अटकलों का वक़्त गया अब फैसले की बारी है न जाने इस बार कौन से उलटफेर की तैयारी है हवाएँ बड़ी बेचैन हैं  एक एक पल आज भारी है कल आसमां का रंग क्या होगा ज़मीं की कशमकश जारी है - राकेश 

ये सफ़र बहुत है कठिन मगर....

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                                                                                                                             Image by  Quang Nguyen vinh  from  Pixabay स्टार्टअप मेरी सोंच और मेरी जिंदगी का एक बड़ा हिस्सा बन गया है. मेरे अनुभव में एक फाउंडर के लिए स्टार्टअप की यात्रा बड़ी व्यक्तिगत होती है जो गहरी छाप छोड़ जाती है. ऐसे ही एक फाउंडर ने स्टॉर्टअप के संघर्ष के दर्द को बयान करने के लिए मीर तकी मीर का ये शेर लिखा जिसने मुझे सोंच में डाल दिया.   सुबह होती रही, शाम होती है ,  उम्र यूं ही तमाम होती है  स्टार्टअप फाउंडर के लिए फिर मैंने कुछ पंक्तियाँ लिखीं जो हर स्टार्टअप फाउंडर के साथ साझा करना चाहूंगा:   मंज़िल दहलीज़ पे खड़ी है दबे पांव आके,  कोशिशों के सिलसिले तमाम होने से बचा    कारवां थम रहा है तेरे मायूस हो जाने से,   हाथों की लकीरों को बदनाम होने से बचा   सूरज अभी ढला नहीं, रात कहीं किनारे पे है, फ़लक में रोशनी की एक लकीर अभी बाकी है    उम्मीदों को ज़िंदा रख, हौंसलों को बुलंद कर ज़िन्दगी बदलने वाली तेरी तक़दीर अभी बाकी है     - राकेश