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अंधकार से एक नया परिचय

बहुत दिनों से एक ख्याल मन में आता रहा कि अँधेरे को हम बुरा क्यों मानते हैं. जब भी सोंचता हूँ तो जान पड़ता है कि बुराई अँधेरे में नहीं बल्कि अँधेरे की आड़ में पल रहे अज्ञान और दुश्चरित्रता में है. फिर अँधेरे को दोष क्यों? इन्ही विचारों आगे बढ़ाया और को कुछ छंदों में बाँधा है. ------------------------------------------------------------------------------------------------ अंधकार से एक नया परिचय करवाने बैठा हूँ, मैं द्वंद्व ठाने बैठा हूँ । नित यामिनी की गोद मे अठखेलियां करती प्रभा फिर क्यों घृणा का पात्र बन अपमान सह लेता तमस, हैं कोख में ही तिमिर के जब जन्म लेतीं रश्मियां फिर क्यों उजाले का सदा यशगान करता है जगत। जो सत्य को नया अर्थ दे वो गीत गाने बैठा हूँ, मैं द्वंद्व ठाने बैठा हूँ । जो है चिरंतन स्वयंभू जो स्वयं सृष्टि का गर्भ है फिर भी कलंकित है तमस ये कौन सा अभिशाप है, वो आदि था और अनंत है हर छोर तक ब्रह्माण्ड के जिसे मृत्युतुल्य समझ लिया उसमे अमरत्व की छाप है। आज समर्पित अन्धकार को दीप जलाने बैठा हूँ, मैं द्वंद्व ठाने बैठा हूँ । तमसो मा ज्योतिर्गमय कह ज्ञान