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वक़्त की करवटें

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कवि स्पर्श पे जीवन के रंग, कविता के रूप में /    Image by  annca  from  Pixabay   एक बड़े आरसे के बाद कुछ लिखा इस बार. लिख कर अच्छा लगा और उम्मीद करता हूँ लोगों को पढ़ के अच्छा लगेगा. हालाँकि उर्दू में हाथ थोड़ा तंग है इसलिए अगर जानकार लोग कुछ गलतियाँ पाएं तो बताएं जरूर, हर कोशिश रहेगी सुधार करने की. अर्ज़ है.....  क्या वक्त के मिज़ाज थे, कैसा इत्मीनान था ज़िन्दगी में यही आसमां, यही चांद और यही रात हुआ करती थी मगर चाँद की रोशनी में कुछ और ही बात हुआ करती थी। सजती है ज़िन्दगी की जो दास्तां अब महफ़िलों में ग़ज़ल बनके वो दास्तां कभी ख़ामोश रूहानी जज़्बात हुआ करती थी। ऐशोआराम से लबालब फिर भी छटपटाती है ज़िन्दगी  फुटकर ख़्वाबों और ख़्वाहिशों  भर से आबाद हुआ करती थी। जो चला रहे हैं आज शराफ़त की चमकदार दुकानें इस  दुनिया में मुहल्ले में सबसे मशहूर उन्हीं की ख़ुराफ़ात हुआ करती थी। दूर ही दूर से अब याद कर लेते हैं जो पड़ने पे ग़रज़   इन्ही दोस्तों से नुक्कड़ पे यूं ही घंटो मुलाकात हुआ करती थी। क्या हुनर रखते हैं जज़्बातों को तमाशा बना के बेचने वाले कोई याद दिलाए कितनी पाकीज़ा एहसासों की सौगात हुआ करती थी। बे