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ज़िन्दगी पे कुछ ख्याल छोटे छोटे

ये कुछ अनायास ख्याल जो मेरे  ज़ेहन  में तैर रहे थे, मैंने पकड़ के छन्दो में लपेट दिए. ये इस बार कुछ अनोखे से रूप में आये हैं. त्रिपदी मालूम होते हैं, लम्बे हायकू भी कह सकते हैं. न जमे तो मुक्त कविता समझ लीजियेगा.  1)  मोहलत जो मिली जिंदगी समझने के लिए,  फ़क़त जिंदा रहने की कोशिशों में फुंक गयी | लम्हों की भाग दौड़ में इक उम्र चुक गयी। [What ever little time I was given on earth was meant to fully understand the life, alas, it's all gone just in my mundane struggle to survive. The rush of moments never ended, but life has.]  2)  सपने बेहिसाब, अरमान हद से ज्यादा, करने को बहुत कुछ और वक़्त बहुत कम है।  और वो पूँछते हैं जिंदगी में क्या ग़म है?  [Countless dreams, limitless aspirations, so much to do and so little time in life. And yet, they ask "got a problem?] 3)  एक कप चाय और डबलरोटी के दो टुकड़ों में अब शामें नहीं होतीं बेवजह ख़ुशगवार। बड़ी बड़ी हसरतें निगल गयीं छोटी छोटी खुशियों का इंतज़ार।    [I miss those days when just one cup hot tea and a soft roa