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अपनी कोई हमराज़ सी लगती है जिंदगी

शाम ढलते ही सायों से सिहरती है  जिंदगी  जिंदा रहने को क्या न करती है जिंदगी  रात कटती है सोंच के एक रात और सही  उजालों की उम्मीद मे  गुज़र ती  है जिंदगी वजहें तो हजारों थीं नाबूद बन के रहते फिर इतना सरोकार क्यूं रखती है जिंदगी ख़ा मोशियों के शोर मे गुम हो गये अल्फ़ा ज़ पर बात मेरे दिल की समझती है जिंदगी जिंदा है  धड़कनों का एहसास ख्वाब से वरना फ़कत सामान सी लगती है  जिंदगी  नज़रों का नज़रिया है दुनिया की हकीकत हाथों की लकीरें भी बदलती है जिंदगी उलझे हैं फासलों मे थोड़े और बहुत के  मिलने के लिये खुद से तरसती है जिंदगी जी भर के जी लिये जो लम्हे वो जी लिये पन्नों मे नहीं वक्त के बसती है जिंदगी हर  शख़्स  अपने आप मे दुनिया है मुकम्मल चेहरों पे बयां जो नहीं कहती  है जिंदगी जब खुद से रूबरू हो जीने की कशिश हो आईने सी पाक़ीज़ा झलकती है जिंदगी फ़ितरत  नहीं रस्तों की जो ढूंढें नयी मंजिल अक्सर मेरे कदमों से ये कहती है जिंदगी फ़ूलों की ख्वाइशों में  काँटों की है शिरकत मुहब्बत हो रूह में तो महकती है जिंदगी अब सोंचता  हूँ  कर  लूँ  अ