Whatsapp ग्रुप की चर्चाएं कभी कभी इस हद तक कड़वी हो सकती हैं की दोस्त ये भी भूल जाते हैं कि वो इस ग्रुप में इसलिए हैं क्यों कि दोस्ती है. ऐसा भी हुआ है कि दोस्ती का सम्मान रखने के लिए और दोस्ती को खतरे में पड़ने से बचाने के लिए मुझे Whatsapp ग्रुप छोड़ना बेहतर लगा. इसी पे किसी दोस्त को ४ पंक्तियाँ बयां की थी... जब मुनासिब नहीं कि तेरे दिल तक मेरी बात पहुंचे, तो बेहतर यही कि हम कुछ दूरियां मुकम्मल कर लें। भला क्या लुत्फ़ ऐसी बेसबब नादानियों में, जब यारानगी दम तोड़ दे बे-आबरू होके।
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