अनंत प्रतीक्षा

शाम हो चली धुंधली धुंधली, छूट गया आशा का अंचल
ओंस रात की बन कर आंसू, पलकों से अब चली निकल

सरक रहा है रेत रेत सा, समय हाथ से हर क्षण हर पल
धुंआ धुंआ हो धीरे धीरे, घुल गए सब सपनों के बादल

रात हो गई कितनी लम्बी, शांत पड़े सब तारा मंडल
अंधियारे में भटक भटक के, सिमट गई जीवन की हलचल

हुए अजनबी आसपास सब, अंतर मन हो रहा विकल
जीवन बन गया एक प्रतीक्षा, और मै अर्थशून्य सा छल.

Comments

  1. बहुत सुन्दर!
    घुघूती बासूती

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