सिगरेट के कुछ आवारा पन्ने...
मै तो पीता नही हूँ पहले ही बता दूँ लेकिन उड़न तश्तरी के समीर लाल जी के लिए (जो कभी सिगरेट के कागज पे अभिव्यक्तियाँ लिखा करते थे) ४ पंक्तियाँ समर्पित की थी, वो यहाँ दुबारा प्रस्तुत कर रहा हूँ।
सिगरेट के कुछ आवारा पन्ने
अपनी पहचान से पूरी तरह अनजान
फ़िर पड़ी किसे है, जिसकी गरज हो वो जाने
ख़ुद तो धुंए के खेल में लिपटे हैं
पर किसे मालूम
कि बड़ी गहरियों में उतरेंगे एक दिन
सिगरेट के वही कुछ गिने चुने पन्ने
थोड़े लापरवाह, काफी कुछ बेलगाम
गुजरे वक्त को सहजे हुए बिना किसी खुदगर्जी के
वो तो वक्त के साथ ही थम गए थे
ये तो हम तुम हैं जिन्हें वक्त से आगे जाने की पड़ी है
और जब कभी आराम के पलों में याद आ जाए
पीछे छूटी अनगिनत अनमोल घड़ियों की
तो फ़िर ढूँढने पड़ते हैं वही
सिगरेट के बेकदर
इधर उधर ठोकर खाते पन्ने
किस्मत अच्छी कि कुछ अभी भी सलामत हैं
नही तो वक्त ने अच्छे अच्छों को धूल चटाया है
कुछ के निशान बाकी हैं तो कईओं को पूरा मिटाया है
चलो, दिन अच्छा है कि फ़िर याद कर रहे हैं हम और आप
अनजाने में ज़िन्दगी का हिस्सा बन गए
वो सिगरेट के कुछ पन्ने
- राकेश
समीर जी का मौलिक ब्लॉग यहाँ है: http://udantashtari.blogspot.com/2009/05/blog-post_14.html
बहुत सही कहा आपने.
ReplyDeleteप्रयास होगा कि स्कैन करके वो पन्ने ही चढ़ाने की कोशिश करुँ मगर काफी हल्के हो चुके हैं और अनुमान से भी शब्द उकेरने पड़ रहे हैं..फिर भी कुछ तो दिखेगा ही.
आपका बहुत आभार इसके साथ जुड़ने का.
स्नेह बनाये रखिये.