वो सुबह कभी तो आएगी...



बनते फूटते बुलबुलों में भी ढूंढ लेता है इन्द्रधनुष के हजारों रंग
पल दो पल भर के लिए ही सही, आज कल भर के लिए ही सही
मन के खिलौनों और सपनों के खेल में उलझा ये मजबूर आदमी
बरसों चलने के बाद भी रहता है वहीं का वहीं
मील के पत्थर की तरह किसी एक जगह रुका सा

कभी न मिल पाने वाली मंजिलों के गीत गाता है, दर्द से रिश्ते बनाता है
आशाओं से सपने बुनता है, मुट्ठी भर हमदर्दी से पिघल के पानी हो जाता है

धरती और स्वर्ग के बीच संघर्ष में जीवन के अर्थ को तलाशता
कभी अतीत के पश्चाताप तो कभी कल की चिंता में अपने आज को नकारता

समय से तेज दौड़ने और जरूरत से अधिक पा लेने की जल्दी में
मन की ग्लानि को मंदिरों की घंटी और पूजा के फूलों में छिपाता है
आज अपनी ही परछाईं से घबराता है और अपने आप से आंखे मिलाने में शरमाता है

देवों की धरती पे जन्म लेके भी मानवता के लिए तरसता है
सब कुछ खो जाने पर भी बस इसी आशा में जिया जाता है

जिसकी खोज है आदमी को वो उजली अनमोल सुनहरी
आज न सही, कल न सही पर एक दिन तो कभी न कभी
अंधेरे को विदा करती, वो सुबह कभी तो आएगी
वो सुबह कभी तो आएगी।

- राकेश

Comments

  1. आज न सही, कल न सही पर कभी न कभी
    अंधेरे को विदा करती वो सुबह कभी तो आएगी
    bahut badhiya rachana . ,ikhate rahiye. dhanyawad.

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  2. Mahendra ji, aapne aaj hi kavita padh li aur aapko pasand bhi aayi...ye mere liye bahu mayane rakhata hai...prayas jari rahega...

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  3. धरती और स्वर्ग के बीच संघर्ष में जीवन के अर्थ को तलाशता
    कभी अतीत के पश्चाताप तो कभी भविष्य के चिंता में वर्तमान को नकारता
    समय से तेज दौड़ने और जरूरत से अधिक पा लेने की जल्दी में
    मन की ग्लानि को मंदिरों की घंटी और पूजा के फूलों में दबाता है

    बहुत गूढ़ बातें बहुत सरल शब्दों में लिखी हैं आपने. सुबह से सोच रहा था की facebook से वो पंक्तियाँ गायब कहाँ हो गई. अभी यहाँ पूरी कविता मिली तब जाके संतोष हुआ.

    आप लिखा करिए. बहुत अच्छा लिखते हैं. कुछ समय निकाल लिया करिए. आशा है कि जल्दी ही और कवितायें भी पढने मिलेंगी..

    शुभकामनाएं..

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  4. ब्लोगिंग जगत में आपका स्वागत है।
    शुभकामनाएं।
    कविता,गज़ल और शेर के लि‌ए मेरे ब्लोग पर स्वागत है ।
    मेरे द्वारा संपादित पत्रिका देखें
    www.zindagilive08.blogspot.com
    आर्ट के लि‌ए देखें

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  5. आज आपका ब्लॉग देखा....... बहुत अच्छा लगा. मेरी कामना है की आपके शब्दों को नए अर्थ, नई ऊर्जा और विराट सामर्थ्य मिले जिससे वे जन सामान्य के सरोकारों की अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम बन सकें.....
    कभी समय निकाल कर मेरे ब्लॉग पर पधारें-
    http://www.hindi-nikash.blogspot.com

    सादर-
    आनंदकृष्ण, जबलपुर

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  6. राकेश, "समय से तेज दौड़ने और जरूरत से अधिक पा लेने की जल्दी में" यह पंक्तियाँ आज हमारे समय की एक बड़ी विडंबना को अभिव्यक्त करती हैं। बहुत सुंदर।

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