होली और हंगामा

रंगों की धुंधली परछाईं मन के आंगन में घूम गई 
कुछ गुजरी नटखट सी बातें मन की दहलीज़ें चूम गयीं 
कुछ दिन ही अब बाकी हैं हुल्लड़ और हल्ले गुल्ले में
फ़िर वही पुरानी टोली और फ़िर से हुडदंग मुहल्ले में 
फिर नई शरारत सूझेगी, उत्साह भरे हर पल होंगे    
अपने रंगों की बौछारों पर जाने कितने आंचल होंगे 
रंगों का बहाना भी होगा, कुछ छेड़ छाड़ कुछ धूम धाम 
काम धाम सब बंद पड़ा, कुछ दिन अब मस्ती सुबह शाम 
दर्द गए सब भूल सभी तकलीफें हुईं रफू चक्कर 
मिलना जुलना सब लोगों से, घर से बाहर रहना दिन भर 
होली के दिन कुछ हटके हैं, फ़िर ऐसा कब मौसम होगा 
कितना भी मचाओ हंगामा, सच कहता हूँ कम होगा 
बस बैठा सोंच रहा हूँ मैं, कल की यादें कल के सपने 
रंगों की धुंधली परछाईं, है दिखा गई फ़िर रंग अपने 
रंगों की धुंधली परछाईं, है दिखा गई फ़िर रंग अपने |

- राकेश 

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