अंजाम-ए-मोहब्बत
Photo credits: wallpapers.com
ख़ूब मजमा लगा इश्क़ की हार परसारी दुनिया हंसी मेरे एतबार परवो भी अपने ही थे जो गए छोड़ करक्या बड़ी बात है, अश्क थे बह गएजान भी होती क़ीमत तो मंज़ूर थीज़िंदगी ना कभी ऐसे मजबूर थीलग गई दांव पर ग़ैरत-ए-इश्क़ जबसी लिए ओंठ महफ़िल में चुप रह गएथी मुहब्बत तो सांसे भी चलती रहींरख़्श-ए-उम्मीद में रातें ढलती रहींउफ़ न की दर्द दिल का दफ़न कर लियादाग-ए-दामन समझ कर दुआ सह गएखेल महंगा पड़ा फर्त-ए-जज़्बात मेंदर्द बढ़ता गया हर मुलाक़ात मेंरंज रखते ज़माने से क्या उम्र भरकहने वाले हमें सर-फिरा कह गए
- राकेश
Comments
Post a Comment