बदलाव की आहुति
कवि स्पर्श पे जीवन के रंग, कविता के रूप में / photo credits: Pixabay/CC0 Public Domain |
मेरा अधिकार था तो मैंने इतिहास पर जी भर के उंगलियां उठाईं
तुम्हे भी कल ये अधिकार होगा कि मुझे तुम कटघरे में ले आना
मेरे हिस्से का जीवन तो ढल गया और हाथ कुछ आया नही
तुम्हारी तो बस शुरुआत है, हो सके तो खाली हाथ मत जाना
मेरे पास सवाल थे और उम्मीद थी कि कल नयी सुबह होगी
सुबह के इंतज़ार में बदलाव की नींव कई पीढ़ियां निगल गई
लेकिन कल तुम्हारा होगा, बदलाव की डोर तुम्हारे हाथ होगी
ये न कहना तुम्हारी भी जिंदगी गड़े मुर्दे उखाड़ने में निकल गई
इतिहास की छांह में बदलाव की आग को राख न बनने देना
झुलस लेना थोड़ा, नए कल की आंच से न डर जाना
समुद्र के किनारों पे दस्तक दे रही है बदलाव की आंधी
अब पुराने पेड़ टूटें तो न रुकना और न ही आंसू बहाना
तुम्हे अपने कंधों पे हर गुजरी पीढ़ी का हाथ महसूस होगा
उनके लिए बदलाव की हर चोट को सिर उठा के सहना
ये उम्मीद न रखना कि आंधी थमेगी तुम्हारा जीवन ढलने तक
महायज्ञ है ये, तुम्हारे बाद भी रहेगा, आहुति डालते रहना
- राकेश
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