हमारी ईंट तुम्हारे पत्थर....

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फेसबुक और ट्विटर पर कभी हम हम नहीं रहते, कभी तुम तुम नहीं रहते. मुद्दों की गर्माहट में रिश्ते सुलग जाते हैं, लकीरें खिंच जाती है और इंटरनेट के परदे के पीछे छुप कर हर कोई अपने अंदर के इंसान को भूल जाता है. इंटरनेट की बहस डिजिटल दुनिया में नाश्ते और खाने जैसा ही हो गयी है और दूर से देखता हूँ तो इंटरनेट के बड़े मंच पर सिर्फ ईंटे पत्थरों के ढेर ही नज़र आते हैं. इन्ही ईंट पत्थरों को चार पंक्तियाँ समर्पित हैं....


ईंट का जवाब पत्थर से दिया और अपनी ख़ुदी में चूर हो गए,
औरों के एहसास कौन समझे, अपनी सुना के अव्वल मशहूर हो गए |

दोस्त हैं तो कोई बताये आखिर क्यों ईंट पत्थर उठाने को मज़बूर हो गए, 
न हम बदले न तुम मगर अफ़सोस, ईंट और पत्थर वाजिब जरूर हो गए |

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