पुलवामा - आज रक्त फिर उबल रहा है

१४ फरवरी की रात भारत का हर नागरिक मन में असहनीय दर्द और आक्रोश भर के सोया. भारत के ४२ वीर जवान आतंकवादियों के एक कायरतापूर्ण बर्बर हमले की भेंट चढ़ गए. आज भारत की मिट्टी में एक नया संकल्प जन्मा. हमारी नसों में दौड़ने वाला खून हर शहीद हुए जवान के शरीर से बहे एक एक लहू के कतरे का कृतज्ञ है. ये कविता पुलवामा में आहुति चढ़ा के आये भारत के शेरों के लिए:
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झूठ बन गयी अमन की आशा
चिढा रही अब प्रेम की भाषा
सहनशीलता की लपटों में, सारा भारत पिघल रहा है
आज रक्त फिर उबल रहा है


ऋषी मुनी संतों के वंशज
प्रथम वार को पाप ही जाना
विष के दंश मिले बदले में
सांप को फिर क्यों दूध पिलाना

छलनी छलनी कर के छाती, दुश्मन बच के निकल रहा है
आज रक्त फिर उबल रहा है


और नहीं आहुति प्राणों की
बहुत सह लिये पीठ में खंज़र
टूट चुके हर बांध क्षमा के
एक मौत का बदला दस सिर
आंखें नम हैं पर सीनों में, आग का दरिया मचल रहा है
आज रक्त फिर उबल रहा है


मिटने दो लक्ष्मण रेखाएं
उठने दो प्रतिशोध की ज्वाला
आज खुलेगा चक्षु तीसरा
प्रबल प्रचंड पराक्रम वाला
शूरों की हुंकारों से फिर, दुश्मन का दिल दहल रहा है
आज रक्त फिर उबल रहा है
आज रक्त फिर उबल रहा है ||

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