मै मानसी, एक अनंत असाधारण कल्पना
अरविन्द पाण्डेय जी की परा वाणी पर कविता पढ़ी। बड़ी अच्छी शैली है। नारी पर उनकी कविता "मै नारी हूँ, नर को मैंने ही जन्म दिया " ने मुझे प्रेरित किया की मैं इस विषय पर अपनी ४ पंक्तियाँ जोड़ दूँ। प्रस्तुत है वो ४ पंक्तियाँ..., अरविन्द जीको आभार सहित धन्यवाद...
मै मानसी
मै हूँ एक अनंत असाधारण कल्पना
सृजन और प्रलय से परे
उस शक्ति की रचना
जिसकी अभिलाषा को
मैंने ही आकार दिया
उसकी सर्वश्रेष्ठ रचना को
अपना गर्भ देना स्वीकार किया
और किया स्वीकार अपनी शक्ति को
प्रसुप्त, अव्यक्त और निस्तब्ध रखना
और पुरुष के अंहकार विष को
अपने ममता के कंठ में उतारते रहना
ताकि उस सृष्टा की अभिलाषा
कलुषित न हो, दूषित न हो
युग युगांतर तक उसकी कल्पना
फले फूले, खंडित न हो
और स्वीकार किया कामनी का रूप धर
माया के प्रबल चक्रवात को समेटे रखना
जब भी पुरुष की विवशता आंसू बन छलके
तो उसके स्वाभिमान को पुनर्जीवित करना
पर सत्य की ये क्या विवशता
कैसी है ये विडम्बना
जिसके लिए सब कुछ समर्पित,
आज मेरे अस्तित्व पर वह प्रश्न चिह्न क्यूँ बना?
पर मै तो अमिट, चिर संजीवनी, चिर जीवषी
मै हूँ मानसी
मै हूँ एक अनंत असाधारण कल्पना
मै मानसी
मै हूँ एक अनंत असाधारण कल्पना
सृजन और प्रलय से परे
उस शक्ति की रचना
जिसकी अभिलाषा को
मैंने ही आकार दिया
उसकी सर्वश्रेष्ठ रचना को
अपना गर्भ देना स्वीकार किया
और किया स्वीकार अपनी शक्ति को
प्रसुप्त, अव्यक्त और निस्तब्ध रखना
और पुरुष के अंहकार विष को
अपने ममता के कंठ में उतारते रहना
ताकि उस सृष्टा की अभिलाषा
कलुषित न हो, दूषित न हो
युग युगांतर तक उसकी कल्पना
फले फूले, खंडित न हो
और स्वीकार किया कामनी का रूप धर
माया के प्रबल चक्रवात को समेटे रखना
जब भी पुरुष की विवशता आंसू बन छलके
तो उसके स्वाभिमान को पुनर्जीवित करना
पर सत्य की ये क्या विवशता
कैसी है ये विडम्बना
जिसके लिए सब कुछ समर्पित,
आज मेरे अस्तित्व पर वह प्रश्न चिह्न क्यूँ बना?
पर मै तो अमिट, चिर संजीवनी, चिर जीवषी
मै हूँ मानसी
मै हूँ एक अनंत असाधारण कल्पना
्राकेशजी मेरे पास शब्द नहीं हैंकि मै इस रचना की तारीफ कर सकूँ
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर भाव्मय कविता है आभार्
निर्मला जी, आपकी सराहना से कविता सफल हो गयी...इससे भी बेहतर लिखने का प्रयत्न रहेगा...आप ब्लॉग पे पधारते रहिये....धन्यवाद
ReplyDelete